पृथ्वी से बातें
पूछना है मुझे तुमसे क्या पाँव मेरे तुमको सहलाते हैं?
क्या गीत मेरे तुमको बहलाते हैं?
क्या रोती हो तुम जब चोट लगती है?
क्या हंसती हो जब फूल कली खिलती है?
करवट लेना भी तुम्हारा कमाल होता है
हिलती हो ज़रा सा तो भूचाल होता है
पर हिलने की इजाज़त भी भला तुम क्यों लो?
खुद की थकान मिटाने की सलाह तुम क्यों लो?
तुम हो, तुम्हारा वजूद है, तुम्हारी बातें हैं
वो तो हम हैं जो तुमको इस तरह से बांटें हैं
क्या सोचती हो आदमी ऐसा क्यों है?
जैसा करता है वो वैसा करता क्यों है?
क्या बोझ तुमको बहुत ज़्यादा लगता है?
क्या आदमी तुमको नेक इरादा लगता है?
क्या साथ दोगी इसका तुम निःस्वार्थ भाव?
नहीं रखोगी न तुम कोई मन मुटाव ?
आज कह दो सब तुमको अच्छा लगता है
हर आदमी तुमको अपना बच्चा लगता है
इसीलिए तो पूछना है तुमसे आज
क्या पाँव मेरे तुमको सहलाते हैं?
क्या गीत मेरे तुमको बहलाते हैं??