बेशक़ीमत !
सिन्दूर की डिबिया में एक संसार है
मानो तो ज़िंदगी है वहां
ना मानो तो सब बेकार है
पूछना है कि सच में क्या है इस डिबिया में ?
पूछना है मायने क्या है इसका दुनिया में
परिवार?
प्यार?
व्यवहार ?
नाते रिश्तेदार?
ज़मीन जायदाद ?
घर-बार आबाद ?
साल गिरह सगाईयाँ?
महफ़िलें शहनाईयां ?
जशन बारातें ?
हज़ारों सौगातें?
हँसते खिखिलाते चेहरे
चमचमाते लिबास और सेहरे
और हाँ बंद हैं इस सिन्दूर की डिबिया में
लाखों हसीं सपने भी
पर ये होश आया है मुझे अभी अभी
कि
सिन्दूर की डिबिया रही किसी के लिए परिवार
किसी के लिए ढेर सारा प्यार
किसी के लिए सिर्फ रिश्तेदारी
और किसी के लिए ढेर सारी ज़िम्मेदारी
किसी की सिन्दूर की डिबिया रोई भी चिल्लाई भी
तो किसी की हरदम हंसी और खिलखिलाई भी
किसी की फेंकी भी गई और बदनाम भी हुई
किसी की रानी बनी और खानदान की हुई
उस सिन्दूर की डिबिया को मेरा नमन है
जो रंगीन है खुशहाल जिससे चमन है
जवाब नहीं उस डिबिया का कि जो तप तप के और दमकी है
वो डिबिया जो मुश्किलों के दौर में और चमकी है
औरत के लिए सिन्दूर एक सौगात है शगुन है
पर सिन्दूर की डिबिया कभी सजा भी है दमन है
पांच सितारा होटलों में भी खुलती है सिन्दूर की डिबिया
एक फूस की झोपड़ी में भी चमकती है सिन्दूर की डिबिया
डिबिया चाहे जो भी हो सिन्दूर सिन्दूर होता है
जिसकी कीमत ही लग जाए वो सिन्दूर अपना मान खोता है
और यहाँ तो लोग ‘एक चुटकी सिन्दूर’ की भी कीमत लगा रखे हैं
‘बेशकीमती’ चीज़ को भी मामूली बना रखें हैं
क्या कीमत है उसके सिन्दूर की ये तो लगाने वाला ही बताएगा
सिन्दूर बिना कीमत के ना मिला है ना मिल पायेगा।