ये दशक
कुछ ये दशक है बदला
कुछ मैं बदल गयी
निकली थी दुनिया बदलने
खुद ही संभल गयी
दस साल कैसे गुजरे
पूछो ना लोगों हमसे
मौसंम के साथ मैं भी
बरसी....उबल....गयी
हालात बहुत बदले
कुछ लोग मिले बिछड़े
बहुत पाया और कुछ खोया
कभी हंसा कभी रोया
रिश्तों की भीड़ में से
कुछ छोड़ा कुछ संजोया
कुछ साहस भी बंटोरा
कुछ अपना दिल भी तोडा
कुछ सपने भी सजाये
कर्त्तव्य भी निभाए
कुछ खुद ही खुद को मारा
कुछ खुद ही फिर संवारा
कई शब्द मेरी लेखनी के
हो गए आवारा
मेरी उम्र चढ़ के बोली
ज़रा मन टटोल भोली
वो जानता है तू क्यों
फैलाये अपनी झोली
उम्मीद की तपिश से
मैं अक्सर पिघल गयी
कुछ ये दशक है बदला
कुछ मैं बदल गयी