जब सूरज आँखें मलता है
जब सूरज आँखें मलता है
और मुंह को किरणों से धोता है
तब धीरे धीरे एक गुलाबी दिन भी पैदा होता है
जब कली ज़रा सा हंसती है
और भंवरा थोड़ा रोता है
तब धीरे धीरे एक रंगीला फूल भी पैदा होता है
जब कवि ह्रदय मचलता है
और सुर में लेता गोता है
तब धीर धीरे एक सुरीला गीत भी पैदा होता है
जब चिड़िया दाना लाती है
और चिड़ा घोंसला संजोता है
तब धीरे धीरे प्यारा सा एक कुनबा पैदा होता है
जब फूल एक मुरझाता है
अपने बीजों को खोता है
तब धीरे धीरे नन्हा मुन्ना एक पौधा पैदा होता है
जब मैं चारों सु तकती हूँ
तब ऐसा भान क्यों होता है
कि हर पल हर छिन धीरे धीरे
कुछ नया सा पैदा होता है।
- रोली ‘ २०