किताब पन्ने

किताबों के पन्ने तो बस महकते हैं

एहसासों की रौशनी में चमकते हैं

कहते हैं जो भी कहना हो नहीं डरते हैं

जो कभी ना हुआ हो ये वो भी करते हैं

मेरा हाथ थाम मेरे संग संग चलते हैं

हर रंग जिंदगी का हम पहनते हैं

पन्नों में जजबात कुछ भटकते हैं

उङते तो हैं पर जरा जरा अटकते हैं

खिलखिलाते हैं कभी कभी सिसकते हैं

मर भी जाते हैं फिर जिंदा हो फुदकते हैं

बनते बिखरते पन्नों में तमाम रिश्ते हैं

यही रंग जिंदगी के यारों समझो बिकते हैं

किताबों के पन्ने तो बस महकते हैं।

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