नदियाँ जन्म लेती हैं
जैसे हमारी गंगा मैया गंगोत्री से निकलती हैं
वैसे ही कई नदियाँ कहीं और से निकलती होंगी
जैसे हमारी गंगा मैया हिमालय पर से फिसलती हैं
वैसे कई और भी पर्वत श्रृंखलाओं से फिसलती होंगी
नदियाँ जन्म लेती हैं तो धरा तर हो जाती है
नदियां सूखती हैं तो ज़िन्दगी तर बितर हो जाती है
चमत्कारी और जीवनदायी होती हैं नदियाँ
कहानियों और किंवदंतियों में जीती हैं नदियां
आसमान में भी बहती हैं भिन्न नामों से
पाताल में भी मचलती हैं कई ठिकानों पे
धरती के हर हिस्से , हर कोने में विराजमान हैं ये
औरर तरह तरह से पूज्य्नीय प्रावधान है ये
गंगा मैया तो वेद काल से हमें लुभाये हैं
वर्तमान में भी हम सबका मन लगाए हैं
नदियों का कोई पूर्व , कोई पश्चिम नहीं होता
उनका कोई उद्गम कोई संगम नहीं होता
किनारों में सीमित निरंतर अपनी राह पर चलती हैं
नदियों के विशवास पर, इतिहास, सभ्यताएँ पलती हैं
पृथ्वी के देह पर रक्त की धमनियों सी हैं नदियाँ
जीवन प्रमाण, इस पृथ्वी की इन्द्रियों सी हैं नदियाँ।