बताना था

बताना था

वो दरवाजे की दरार से छन कर

आने वाली सूरज की किरण को

अपनी हथेली में ले कर

कितनी दूर से जीवन लिए चली आती हो

थक के कभी नहीं सुस्ताती हो

गर्व होता है कि नहीं ? 

बताना था

उस काली पीली उड़ती फिरती तितली को

उस चपल चतुर रंगों की पोटली को  

अपने छोटे से जीवन में ही

कितनी सुंदरता फैलाती हो

पर कभी सोचा है कि

कितने अंधकार से लड़ कर के तुम आती हो

गर्व होता है कि नहीं? 

बताना था

उस पानी से भरे बादल के टुकड़े को

उस रूई से सफेद दिखते मुखड़े  को

उड़ते फिरते हो लेकर बोझ

जो कि जीवन है हमारा

 उड़ेल देते हो उसे निःस्वार्थ

इस धरती पर जलधारा   

गर्व होता है कि नहीं? 

बताना था  

उस दिखते छिपते चाँद को

उस बनते बिगड़ते रात के स्वांग को  

गगन के भाल पर हो तुम नगीना

सितारों की टिमटिमाहट को ना तुमने छीना

और  नहीं कभी अपने दागों को छिपाते हो

बुझ बुझ कर फिर से चमक दमक आते हो

गर्व होता है कि नहीं?

बत्ताना था  

चट्टानों में उगते उन बैंगनी, गुलाबी फूलों को

झाड़ियों से झाँकते मंजुलों  को  

पत्थरों की अंधेरी दरारों को घर बनाते हो

कोशिशों से स्वयं को जिताते हो

वीरानों में खुल के खिलखिलाते हो

गर्व होता है कि नहीं?

Previous
Previous

माटी कर्म

Next
Next

You are the beginning!