माटी कर्म

मिट्टी बोलती है

सड़ी गली पत्तियों की भाषा

कुचले हुए पत्थरों की अभिलाषा

मिट्टी हँसती भी है

नहाकर बारिश की बूंद से

कोयल की मधुर मधुर गूंज से

मिट्टी नाचती है

हवा संग गोल गोल घूम कर

मेरे तेरे पैरों को चूम कर

मिट्टी खिलखिलाती है

इंद्रधनुषी पुष्पों के रंगों में

खेतों के थिरक उठे अंगों में

मिट्टी पूछती है

मैं आयी पहले मानव के आए तुम?

मैं जी रही हूँ तो क्यूँ फिर मुरझाए तुम?

मिट्टी मांगती है

थोड़ी करुणा थोड़ा प्यार

थोड़ा पानी सींचता उसका आधार

मिट्टी कराहती है

कटता है तन ,छिलता है मन

विष उर्वरक है और विष रासायन

मिट्टी दिखाती है

भूत और भविष्य को

हर काल के अपार जीवन दृश्य को  

मिट्टी जोड़ती है

मिट्टी को सँजोये हम

इस मिट्टी में वैभव सफलता बोएँ हम

क्यूंकी

सब मिट्टी से शुरू होता है

सब मिट्टी में मिल जाता है।

और मिट्टी बोलती है, हँसती है

नाचती है , खिलखिलाती है

पूछती है, मांगती है

दिखाती है, और कराहती है।

पर इन सबसे ऊपर मिट्टी जोड़ती है।  

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