सूरज की किरणें

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सूरज की किरणें फुदकती सी दिखती हैं 

वृक्षों की कतारों में  सरकती सी दिखती है

छन छन कर गिरती हैं पत्तों के झुरमुट से 

सोने के पानी के झरने सी दिखती हैं 

सूरज की किरणें फुदकती सी दिखती हैं 

छूती हैं फुदक फुदक चिड़िया के पंखों को 

चूमती  लपक लपक  वृक्षों के शिखरों को 

गाती हैं गीत मिल के फूलों की कलियों से 

ओसों की बूंदों में चांदी  सी खिलती हैं 

सूरज की किरणें फुदकती सी दिखती हैं 

कभी नाचती हैं किसी घर के मुंडेर पर 

तो कभी चढ़ जाती किसी मिटटी के ढेर पर 

कभी उठती गिरती हैं पानी की लहरों में 

कभी वो दरारों से चुप चाप रिसती हैं

सूरज की किरणें फुदकती सी दिखती हैं 

कभी फ़ैल जाती हैं मेरे घर की छत पर वो

कभी पहुंचती हैं खेत खलिहानो की हद पर वो  

कभी खिलखिलाती हैं मेहनती के पसीने में 

कभी मेरी गोदी में बस यूँ ही  मचलती हैं 

सूरज की किरणें फुदकती सी दिखती हैं 

मुट्ठी  में बंद कर के रख लूँ मैं क्या इनको?

या इन पर चढ़ कर के पहुंचूं मैं सूरज तक 

या बिखर जाऊं मैं संग इनके धरती पर 

किरणें बस बहती हैं कहाँ कभी रूकती हैं?

सूरज की किरणें फुदकती सी दिखती है

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