जब बचपन था
जब बचपन था हम छोटे थे
और थोड़े थोड़े खोटे थे
जब मन करता तब जगते थे
जब मन करता तब सोते थे
खेल खिलौनों की दुनिया में
सपने खूब संजोते थे
हम कलम किताब में उड़ते थे
हम आसमान में खोते थे
अपने जैसे छोटे मोटे
दोस्त बहुत से होते थे
कभी तितली हम पकड़ते थे
कभी सिक्कों को हम बोते थे
रंगों से भर जाते थे
फिर उन रंगों को धोते थे
अपने जन्मदिनों पर हम
दुनिया के राजा होते थे
कभी डांट सुन के रो लेते थे
कभी प्यार में ग़ुम हो लेते थे
सब सोचते थे हम सबके हैं
पर हम बस खुद के होते थे
जब बचपन था हम छोटे थे
और थोड़े थोड़े खोटे थे