कोई बात करो
दिये की लौ का उजाला तो दिखाई देता है
दिये तले के अँधेरे की भी तो कोई बात करो
चमकती लौ की तो बहुत दुहाई देते हो
थरथराती हुई से भी तो मुलाक़ात करो
उजालों की तो तारीफ़ बहुत करते हो
लौ जो जलती है तो उजाला देती है
जगमगाहट से बहला लेते हो दिल अपना
तमतमाहट की भी तो कभी बात करो
उजालों से तमाम ज़िन्दगी है मिले
दिये जले तो उजाला है खिले
अंधेरों को मार देते हो तुम
अँधेरे हैं तो उनकी भी सौगात करो
दिये की लौ को हवाओं से भी बचाते हो
बड़े शौक से ड्योढ़ियों पे सजाते हो
कहीं लपक के लौ जला ना दे कोई आँचल
लौ की शरारतों से भी दो दो हाथ करो
दिये की लौ का उजाला तो दिखाई देता है
दिए तले के अँधेरे की भी तो कोई बात करो।