आसमान को सूरज से

आज आसमान को सूरज से कुछ कहना था

ऐसे ही नहीं बस उसका बन के रहना था

पूछा क्यूँ मुझसे ऐसा खेल करते हो?

सुबह साँझ मुझसे कैसा मेल करते हो?

विचरते हो यहाँ वहाँ तुम अपनी मर्ज़ी से

उगते और डूबते भी हो तुम अपनी गर्ज़ी से

चित्रकारी भी बड़ी कमाल करते हो

रुके रुके ही कैसा धमाल करते हो

मुझमें सुनहरा और चाँदी सा रंग भरते हो

अपनी किरणो से मुझको दंग करते हो

किरणे छेड़ती हैं मुझे सवेरे भी और शाम को भी

वो ही सब कुछ हैं मैं तो यूँ ही बस नाम का ही

मैं या तो तुम्हारा हूँ या कि इस पृथ्वी का हूँ

किसी का भी नहीं हूँ और हर किसी का हूँ

‘आसमान में सूरज’’आसमान का सूरज’ ये सब बस बातें हैं

तुम हो तो मेरी सुबह हैं मेरी रातें हैं

तुम ही से तो सुंदरता मेरी सारी है

तुम्हारा होना ही हम सबके लिए चमत्कारी है

आज आसमान को सूरज से कुछ कहना था

ऐसे ही नहीं बस उसका बन के रहना था

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