अर्जी

हे प्रभु  

कौन से किसान की अर्जी भेजूं?

वो किसान जो मैंने हमेशा से महसूस किया 

वही  जो  कंधे  पे हल लिए  पगड़ी  बांधे  

खेतों  में  अपने  बैलों  से  जूझता 

निरीह  सा गगन  को  ताकता 

बाँट  जोहता,  आशा से  

वर्षा के  बूंदों  की 

जो  उसके  खेतों  को  जीवन  देगी  

उसे  फसलों  का मौसम  देगी 

 उसके बच्चों को बचपन देगी  

वही  किसान  जो कभी  दिखता  है 

निरीह  सा  सूखे  पड़े  खेतों  के  बीच  

हर  दरार  उस सूखे  खेत की जैसे  

उस किसान के शरीर पर पड़ा घाव 

और मुख पर वो निःसहाय  सा भाव 

वो किसान जो सो जाता है चिर निद्रा में 

कीड़े मकोड़ों सा 

उनके मारने की दवा स्वयं पी  कर 

हे प्रभु किस  किसान की  अर्जी भेजूं

 मैं तुम्हारे पास?

क्या उस किसान की जो दिख रहा है 

हर तरफ आज कल टीवी चैनलों पर 

आवाज़ उठाता 

अपने विदेशी  ट्रैक्टरों के आवाज़ों  से  भी  ऊंची 

अपने  जेनेरेटरों  के शोर से भी ऊंचा शोर 

अपने मोबाइल फोनो से चिपका , किसान 

अपनी सुविधाओं को बिना तजे 

अपना विरोध प्रकट करने का निश्चय लिए 

अपनी मूंछों पर ताव दे कर  

ऊंची  आवाज़ में ललकारता 

अपने अधिकार मांगता  

किस  किसान की अर्जी भेजूं ?

उसकी जिसका व्यवहार है मिट्टी ?

या उसकी जिसका अधिकार है  मिट्टी ?

उसकी जिसका सिंगार है  मिट्टी ?

या उसकी जिसकी हुंकार है मिट्टी ?

उसकी जिसका गुजार  है  मिट्टी ?

या उसकी  जिसका भण्डार है मिट्टी ?

उसकी जिसका आधार है मिट्टी ?

या उसकी जिसका विस्तार है मिट्टी ?

उसकी जिसका संस्कार है मिट्टी ?

या  उसकी जिसका अहंकार  है मिट्टी ?

उसकी जिसका बाजार  है मिट्टी ?

या उसकी जिसका उद्धार है मिट्टी ?

किस किसान की अर्जी भेजूं ?

मेरे प्रभु?


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