तस्वीरें
तस्वीरें कितनी बदल गयीं हैं ना ?
वो काली सफ़ेद तस्वीरें
पीले पड़े पन्नों पर
एलबमों में झीने पड़े कागज़ों के पीछे छिपी हुई
इक्का दुक्का यादों को सहेजती
बड़ी जद्दो जहद से तैयार होती थीं तस्वीरें
और उतने ही शौक से कभी कभाद
तैयार होते थे
खींचने वाले भी और खिंचाने वाले भी
संदूकों में बंद , कपड़ों की तहों के बीच से
निकल आती थीं
बस यूँ ही जब कभी साफ़ सफाई होती थी
और फिर अचानक ही कुछ यादों को
ताज़ा करती थी
वही इक्का दुक्का विशेष यादें
तस्वीरें टंगती थीं
राजाओं महाराजाओं की
दीवालों पर
तस्वीरें बनती थीं
जोड़ों की , परिवारों की
सालों में एक बार
बड़ा दिवस होता था वो
और वजह भी सजने संवरने की
फिर आया रीलों का दौर
और कैमरों का शौक
सोनी, निककोन वगैरह वगैरह
शुरू हुआ तस्वीरों का स्वयं खींचने का सिलसिला
कई सारी खिंचने लगी
पत्रिकाओं में बिछने लगी
दुकानों में बिकने लगी
अखबारों में छपने लगी
फिर तो ये हुआ की खूब खींची
छाँव खीचीं और धूप खीचीं
बेतहाशा बहुरूप खींची
और अब तो तस्वीरों का क्या वो डिजिटल हैं
हर क्षण हैं और हर पल हैं
हर जगह हैं हर स्थल हैं
वत्सल हैं, चंचल हैं, मंगल हैं
कुछ वास्तविक हैं बहुत सारी केवल नक़ल हैं
मुझ से पूछो तो मेरे चिंतन में दखल हैं
और अधिकतर डिजिटल अनर्गल हैं
अब उन तस्वीरों की बात करें
जो हैं केवल अनुभूति
चिरपरिचित अविस्मरणीय आकृति
अत्यंत ही कीमती स्मृति
वो बदलती नहीं हैं बस पनपती हैं
ह्रदय में संजोई तस्वीरें सिर्फ महकती हैं