श्रेष्ठ तुम्हारी बात है!

भारत माता कितनी पवित्र , उज्ज्वल सी दिखती हो

वेद सरिता में नहा कर तुम कैसी निखरती हो

कैसी दमकती हो तुम चंद्र आभा अद्भुत सी

धरती के माथे पर स्वर्ण तिलक सूरज सी

तुम पे कितने ही वार हुए , कितने ही युद्ध हुए

कितने ही मनुष्य तुम्हारी कान्ति के विरुद्ध हुए

फिर भी समेटा तुमने, फिर भी संभाला उन्हें  

सबको गले लगा लिया शीघ्र ना बिसारा उन्हें

‘आध्यात्म शक्ति’ तुम्हारी सर्वप्रिय धरोहर है

अनेक धर्म, पाठ, विचारधाराएँ हितकर हैं

तुम्हारे अपार  प्रेम की तो गाथा अपरंपार है

तभी तो समेट लिया आँचल में संसार है

अनेकता में एकता का पाठ है सिखाया हमें

‘कर्म ही में धर्म है ‘ का पथ भी दिखाया हमें

इंडिया , हिंदुस्तान , भारतवर्ष, एक ही राष्ट्र है

किसी नाम से पुकारूँ तुम्हें, श्रेष्ठ तुम्हारी बात है ।

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