फिर एक फूल
फिर एक फूल, फिर एक फूल,
फिर एक फूल, लो बसंत आया
और एक रंग, और एक रंग,
और एक रंग लो खिलखिलाया
प्यार का रंग, आशा का रंग,
उत्सव का रंग, लो झिलमिलाया
सर्द सी हवाएँ , गीली सी ओस ,
गुनगुनी धूप में हिया मचलाया
कुछ रंग लाल , कुछ नीला पीला ,
कुछ हरा, नारंगी , फैला उपवन में
सोने सी गेंदा , चांदी सी बेला ,
मखमल सी चम्पा है हर धड़कन में
फूलों पे ओस चमचम चमकती ,
सूरज की धूप छन छन बरसती
मिट्टी कि खुशबू घुलकर हवाओं में
साँसों से मिलने को कैसी तरसती
कैसा ये सूरज, कैसा है ये नभ,
नीली सुनहरी लहरें हो जैसे
बागों में , पर्वत पर, खेत खलिहानों में
सतरंगी झंडे फहरे हों जैसे
खोल दो खिड़कियां घरों की और मन की भी
हंसों जैसे धरती हँसती है खिलखिल
प्रेम पुकार को, प्रकृति के दुलार को,
करने दो हर दिल में ,हर मन में हलचल ।