बिटिया
बिटिया तितली सी होती है
रंगबिरंगी उड़ती हुई
चारों ओर डाली से डाली
रंग बिखराती
बिटिया फूल सी भी होती है
सुन्दर , मासूम , नाज़ुक
पर टूट के भी
खुशबु फैलाती
चारों ओर घर घर में
बिटिया होती है
चूड़ियों की खनक
माथे की चमक
काजल की तीखी धार भी और
वक़्त आने पर तलवार भी
ओस की बूँद सी साफ़
गुलाब की पंखुरियों सी पाक
कभी शर्माती गुड़िया सी
तो कभी बेतक़ल्लुफ़ बेबाक
और इन सबसे ऊपर
बिटिया होती है
एक समंदर
अथाह प्यार लिए आँचल में
माँ बाप का
भाई बहिन का
सब कुछ समेटे हुए
कई राज़
अपने आँचल में
बिलकुल समंदर की तरह
और समंदर की लहरों की तरह ही खुशमिज़ाज़
लौट लौट कर आ जाती है किनारे
बिन बुलाये भी , अपना घर समझ कर
कितने रहस्य एक बिटिया समेटे रहती है
अपने कलेजे में
उतनी ही ख़ास होती है एक कुनबे के लिए
जितना ख़ास
ये समंदर है
इस ज़मीन के लिए
बिटिया
जैसे
कभी एक ओस की बूँद
तो
कभी
समंदर सा खज़ाना।