बारिश आई
फूल जब हंसा तो लगा बारिश आई
बादल बोल पड़ा तो लगा बारिश आई
बारिश की बूंदे मिलीं जो ओस से
एक दरिया जो बहा तो लगा बारिश आई
पंख फड़फड़ाती चिड़ियों का खेला
हरी हरी घास पर बूंदों का मेला
धुले साफ पेड़ों का जम कर थिरकना
हर रंग जब घुला तो लगा बारिश आई
बादलों की लुकछुप, किरणों की मस्ती
कभी छुप के रोतीं कभी मिल के हंसतीं
नदिया भी उमड़ उमड़ ऐसी मचलती
हर सुर हो जब लगा तो लगा बारिश आई
खेतों से उठती आशा की तानें
फसलों में दिखती हीरों की खानें
आसमान भरा भरा झुकता सा दिखता
कोई रंगमंच सा हो सजा तो लगा बारिश आई
प्रीतम के खत की काली सी स्याही
एक बात धुली धुली फिर से याद आई
पानी की रिमझिम , और रिमझिम सी आँखें
हर सपना जब धुला तो लगा बारिश आई।