मुझे मिलना था
मुझे मिलना था एक वन से
पूछना था कि कैसे संभाल लेते हो तुम
इतना सारा जीवन?
यहाँ , वहाँ हर जगह, हर क्षण , हर कण
छोटे से छोटे , बड़े से बड़े तुममे
करोंणो जीव जन्तु करते हैं विचरण
वन पहुंचते ही बस लिपट गई एक विशालकाय वृक्ष से
जो मेरे सपनों का निवासी था
वो भी जैसे मुझसे मिलने का अभिलाषी था
एक दूसरे की धड़कनों में हमने सारा वन देखा
सारी आशाएँ सारा जीवन देखा
हजारों वृक्षों का संदेश पा लिया मैंने
उस विशाल वन का हर एक फल खा लिया मैंने
उसकी छाल भी कुछ मेरी खाल जैसी थी
मेरी धमनियाँ भी कुछ उसकी डाल जैसी थीं
वो भी खूब ऊंचा खूब ऊंचा नभ को छूता था
बादलों में मेरी स्वपननगरी में होता था
जड़ों के साथ जुड़ा था वो धरातल से
नहीं विचलित था काल के वो कोलाहल से
कुछ मुझ सा ही था वो जड़ से लेकर चोटी तक
एक प्रेम गीत से भरा , जीवन की चुनौती तक
जड़ों से जुड़ा और विश्वास स्वयं कि शक्ति पर
दृढ़ता , सहनशीलता और अपनी अभिव्यक्ति पर
एक दूसरे के गले लग कर खूब नाचे हम
मन ही मन हजारों कविताएँ बाँचे हम
मेरी तरह उसमे भी कहानियों का बवंडर था
सारी पृथ्वी थी उसमे और सारा अम्बर था
उस वन का केवल एक वृक्ष नहीं था वो
इस प्रकृति का केवल एक पक्ष नहीं था वो
सदियाँ थीं उसमे, हिम्मत और घमंड भी था
धरती माँ का इतिहास प्रत्यक्ष प्रचंड भी था
सर उठा कर मैंने फिर सम्पूर्ण वन को देखा
उन भीमकाय सहस्त्र वृक्षों में अपनापन देखा
फिर एक ठंडी सांस लेकर पगडंडी पकड़ ली मैंने
उस वृक्ष की सीख अपनी मुट्ठी में जकड़ ली मैंने
विश्व भ्रमण करें, या वन में विचरण करें हम सब
जड़ों से जुड़े रह कर ही निर्वहन करें हम सब
मुझे मिलना था एक वन से
पूछना था बहुत कुछ ।