सुबह मिली

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आज  ड्योढ़ी पे बैठी मुझे सुबह मिली 

जैसे बात करने की वजह मिली 

उसने पूछा क्या हाल चाल है?

क्या मुझसे पूछने को कोई सवाल हैं?

मैं बोली हाँ  सुबह ज़रा बताओ तुम 

अपनी यात्रा की कथा ज़रा सुनाओ तुम 

कहाँ से आती हो, कहाँ को जाती हो?

सुबह से शाम में क्यों बदल जाती हो?

क्या  मुमकिन है की पकड़ लूँ मैं तुमको ?

अपनी बाहों में जकड़ लूँ मैं तुमको ?

क्यों तुम दिन का हिस्सा बन के रह जाती हो?

अपने को दोपहर फिर शाम में बदला पाती हो?

सुबह की देखते देखते शाम हो गयी, ये लोग कहते हैं 

फिर एक नयी सुबह की रोज़ बाँट जोहते हैं 

कैसा लगता है तुम्हे  यूँ रोज़ खुद का खो जाना ?

यूँ  रोज़ तुम्हारा यूँ  दोपहर शाम हो जाना?

और फिर रात भी तो तुम्ही बन जाती हो  सुबह रानी 

कितनी पुरानी है ये सुबह शाम रात की  कहानी 

नयी दोपहर , नयी शाम ,नयी रात नहीं होती है 

पर नयी सुबह तो बार बार लगातार होती है 

चली जाती हो तुम रोज़ नया सा दिन देकर 

पर कहाँ जाती हो ये तो बताओ तुम 

अपनी यात्रा की कथा ज़रा सुनाओ तुम 

मुझे भी तो तुम सा  ही  रोज़ नया होना है   

मुझे भी तुम सा ही रोज़ खुद को  खोना है 

मुझे भी तुम सा  ही रोज़ सज संवर के सुबह 

नए सिरे से नए नए सपनो को संजोना है

 आज  ड्योढ़ी पे बैठी मुझे सुबह मिली 

जैसे बात करने की वजह मिली 


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