पर्यावरण का न्योता 

 पर्यावरण ने मुझे चाय पर बुलाया 

खुली हवा में पेड़ के नीचे बैठाया 

हाल  चाल पूछा और भोजन भी कराया

बहुत चुप चाप था तो मैंने पास में बैठाया 

जब हाल चाल पूछा तो वो मुस्कुराया 

बोला बड़े मजे में हूँ ,

करोड़ों वाहनों ने मेरा सीना सहलाया 

और इमारतों का बोझ तो मुझे बड़ा रास आया 

कारखानों के धुंए ने मेरी साँसों को महकाया 

नदी के प्रदूषण ने मुझे खूब नहलाया 

धुंध की चादर में दुबक मेरा सूरज टिमटिमाया 

प्लास्टिक के थैलों ने मुझे प्यार से सजाया 

पेड़ों ने मर कर कर मेरा दिल बहलाया 

फिर पर्यावरण रुका , मुझे देखा और मुस्कुराया 

बोला अब आदमी का क्या बोलूं ?

 उसी की बदौलत तो मैंने ये सारा कुछ पाया 

फिर मुझे गौर से देखा और चाय का प्याला बढ़ाया 

पर्यावरण ने जब मुझे चाय पे बुलाया

                                     कविता निर्मित  २१ अप्रैल ‘१८ 

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