मन के जीते जीत
दो अक्षर और एक शब्द बन जाता है ये मन
कहते है कि होता है ये जीवन का दर्पण
अपने , मन की सुनो , अपने मन से पूछो
अपने मन को समझाओ,अपने मन को बहलाओ
मन को समझते रहे लोग इन्हीं बातों से
खिलता बुझता रहा मन कुछ मुलाकातों से
मन बहक जाए तो उसे समझा लो
मन बहले अगर तो उसका मज़ा लो
मन लग जाए तो उसकी कोई बात नहीं
मन का हरदम हो ऐसी कोई औकात नहीं
मन डूबता सा भी लगता है कभी लोगों
मन मचले तो झेलो मन की ठगी लोगों
मन की बातें भी तो बहुत सी होती हैं
जिन्हे बताने की कसक सी होती है
मन की सुनने को पर कौन तैयार है ?
मन का मारा यहाँ हर एक लाचार है
मन के जीते जीत भी यहाँ होती है
मन मिल जाए तो प्रीत भी यहाँ होती है
मन उखड जाए तो उसे जमाने की सोचो
मन भर जाए तो फिर से लगाने की सोचो
मन चंगा तो कठौती में गंगा भी लोग कहते हैं
मन के छलावे में भी तो लोग कई रहते हैं
मेरा मन तो अपने में जमाने को लिए बैठा है
हर चीज़ ख़ास से खुद को लगाने के लिए बैठा है।