स्वतंत्रता, कितनी ?

सुनिए सूर्य देवता क्या आपको भी स्वतंत्रता चाहिए? 

स्वतंत्रता कि आप भी घूमने लगें  

अपनी मन मर्ज़ी से झूमने लगें ? 

कभी चलें, तो कभी रुकें  

कभी पसीना पोछें , तो कभी थकें  

व्यथित नहीं हो जाते हैं यूँ ही अड़े रह कर  

इस भीषण आग के तूफ़ान में खड़े रह कर  

क्यों नहीं स्वतंत्र होना चाहते हैं आप भी? 

क्यों नहीं अपना हक़ जताते हैं आप भी? 

यहाँ मुझ पृथ्वी पर तो बस स्वतंत्रता की दरकार है  

हर ओर स्वतंत्र जीवन जीने की पुकार है  

जैसे अगर स्वतंत्रता नहीं हो तो सब बेकार है  

स्वतंत्र विचारों से ही सबका उद्धार है  

सूर्य देवता मनुष्य की इस मांग पर आपका क्या विचार है? 

अटल, अडिग , अचल , सूर्य देवता ने  

बादलों के चले जाने का इंतज़ार किया  

और फिर अपना मुंह दिखा कर साक्षात्कार किया  

सुनो पृथ्वी , मुझसे तो पूछती हो तुम ये सब  

पर तुम बताओ नहीं रुकोगी तुम कब तक ? 

युगों युगों से यूँ ही घूमती आयी हो  

ना जाने कितने मनुष्यों की तुम सतायी हो  

क्या तुम नहीं चाहती हो अपने मन की करना? 

चलते, चलते, चलते, थोड़ा सा रुकना  

इतनी सी स्वतंत्रता भी तुम्हे  है नहीं मिली 

मुझसे पूछने चली हो स्वतंत्रता के मायने करमजली  

वो तो हम जो बंधे हैं अनुशासन से तो मनुष्य चलता है  

विचारों की, राष्ट्र की, स्वयं की स्वतन्त्रता की बात करता है  

स्वतंत्र तो हम भी हैं पर नियमों से बंधे हैं हम  

इस ब्रह्माण्ड की ज़िम्मेदारियों से लदे हैं हम  

सुरक्षित रखना है हमें इस मानवीय जीवन को  

उनकी इस मायानगरी, इस जीवन चक्र प्रयोजन को  

जो सुरक्षा ना दे ऐसी स्वतंत्रता हमें स्वीकार नहीं  

अपनी मन मर्ज़ी से जीने का हमें अधिकार नहीं  

सुनो पृथ्वी जो जीवन हैं ना तुम पर वह तभी तक सुरक्षित है  

जब तक हमारी स्वतंत्रता नियमित है, स्वतंत्रता व्यवस्थित है।  

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