स्वतंत्र हूँ मैं ?
कर्तव्यों में बंधा हूँ, स्वतन्त्र नहीं हूँ मैं
मनुष्य हूँ पर क्या जीवित यन्त्र नहीं हूँ मैं ?
क्यों कर्त्तव्य क्या जीवन का ही नहीं हैं अंग?
कर्त्तव्य और स्वतंत्रता क्या नहीं चल सकते संग ?
जहाँ स्वतंत्रता एक मूलभूत मानसिकता है
वहां कर्त्तव्य जीवन है, ऐसी वास्तविकता है
कर्त्तव्य हमारे जीवन का मात्र हिस्सा नहीं हैं
ये तो पूर्ण कथा हैं ,कोई किस्सा नहीं हैं
कर्तव्यों से परे स्वतंत्रता ढूंढना व्यर्थ है
स्वतंत्रता अगर प्रेम है, तो कर्त्तव्य अर्थ हैं