कैसी बरसी हैं आज !

बहुत सारी इकट्ठा थीं,सीली सीली सी

दिल की अलमारियों में

दिमाग की कोठरियों में

आज बस भारी भारी सी हो गईं हैं

नहीं संभल रही हैं

गिरने को तरस रही हैं

मेरी यादें आज बरबस बरस रही हैं

और भीग रही हूँ मैं उन यादों में

क्या नाच पडूँ भीग कर यादों की बारिश में

या भाग कर ढूँढूँ घर की वो छत

जहां छुप कर बचा सकूँ खुद को

इन यादों की बारिश से ?

कैसी बरसी हैं आज ये

हरा भरा कर दिया है मन का उपवन ,

धो ही डाला है सारा सूनापन

टिप टिप सी आवाज़ें भी कर रही हैं

सुना रही हैं भूले बिसरे गीत

भावनाओं में डूबा अनुपम संगीत

भर दिया है आशाओं की सरिता को

नहला डाला है मेरी नई कविता को

नहीं भागूँगी , नहीं छुपूँगी इन बारिशों में मैं

सराबोर कर लूँगी खुद को ख्वाहिशों में मैं

सोचो तो

बहुत सारी इकट्ठा थीं,सीली सीली सी

दिल की अलमारियों में

दिमाग की कोठरियों में

आज बस भारी भारी सी हो गईं हैं

नहीं संभल रही हैं

गिरने को तरस रही हैं

मेरी यादें आज बरबस बरस रही हैं

और भीग रही हूँ मैं उन यादों में

कितना मजा है इन बेमौसम

बरसातों में!

 

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