ख़ुशी , कहाँ बसती हो?
ख़ुशी दिखी
कहाँ दिखी ? ना पूछो तुम
बस दिखी तो मैंने रोक ली और कहा
चलो कहीं बैठ के कुछ बात करते हैं
तुमसे चलो तुम्हारी ही मुलाकात करते हैं
वैसे तो नहीं आती हो हाथ तुम आसानी से
करती हो बहुत तुम मनमानी सी
अब आज मिली हो तो कुछ पूछना है मुझे
जानना है तुम्हे और सोचना है मुझे
बताओ तो तुम कहाँ बसती हो?
क्या तुम बहुत महंगी हो ?
या बहुत सस्ती हो?
तुम बनी बनायी हो की बनाना पड़ता है?
सालों से , दोस्तों से , मुस्कुराहटों से
तुम्हे चुराना पड़ता है ?
प्रियतम के गीतों में हो ? या दूकान के जेवरों में?
नानी की कहानी में हो या उपहारों के तेवरों में ?
क्या मैं तुम्हारे साथ रहने को चुन भी सकती हूँ?
या बस यूँ ही तुम्हें ख्वाबों में बुन भी सकती हूँ?
क्या तुम सबकी हो या किसी किसी की हो?
जो दिल निकाल के रख दे सिर्फ उसी की हो?
बहुत चाहते हैं सब तुम्हे, बुलाते हैं और मनाते भी हैं
अगर मिल जाओ तुम तो लोग खूब जताते भी हैं
पता नहीं मैं क्यों कुछ तुम्हे समझ ना पाती हूँ
जितना सोचूँ तुम्हें उतना उलझती जाती हूँ
जहाँ मैं मानती हूँ तुम होगी, वहां तुम नहीं होती
कभी आंसूओं में भी मिलते हैं तुम्हारे मोती
महलों में तो तुम दिखाई नहीं देती,
झोपड़ी में खिलखिलाती रहती हो
महफिलों में बुझी बुझी सी तुम
तन्हाई में गुनगुनाती रहती हो
कभी सारे जहाँ में घूम घूम कर तुम्हारी तलाश रहती है
कभी एक घर का कोना ही पर्याप्त होता है
कैसा किस्सा है तुम्हारा अंतरंग
कहाँ शुरू कहाँ समाप्त होता है ?
ख़ुशी बोली,
ना मुझको इतना माप तोलो तुम
अपने दिल दिमाग को ही टटोलो तुम
मैं तो हर कहीं की , हर किसी की,हर जगह की हूँ
जो कोई ढूंढ ले बस उसी वजह की हूँ
यूँ ही मिलती भी हूँ, और बन भी सकती हूँ
बंटती रहती हूँ पर नहीं कभी थकती हूँ
पर मैं तो हर एक व्यक्ति में बसी रहती हूं
जो समझ ले मुझे संग उसी के हंसती हूँ
इतना नहीं विस्तार से मुझको सोचो तुम
स्वयं में ही सृजन करो और स्वयं में ही खोजो तुम
वहीँ हूँ मैं , तुम्हारे अंदर में ही बसती हूँ
जो चाहे पा ले मुझे मैं तो ऐसी हस्ती हूँ
और फिर मुझे ख़ुशी दिखी , क्या खूब दिखी
कहाँ दिखी ? अब ये ना पूछो तुम