कहाँ से आता है?

बचपन में किताबों को पलटते समय देखा

एक गोरा गोरा गोल मटोल आदमी

लाल लाल कोट और पैन्ट

लाल टोपी और दाढ़ी सफेद घनी

पूछने पर पता चला था नाम है ‘सैन्टा’

कंधे पर लटका हुआ एक थैला

और हाथ में लिए चमकता घंटा

टन टन टन टन की आवाजों से

फिर उससे मुलाकात हुई अपने

स्कूलों के कमरों में, गलियारों में

और सजे हुए क्रिसमस ट्री की कतारों में

दिखता वो हँसते खिलखिलाते बच्चों से घिरा

जोश, उल्लास प्रसन्नता और स्नेह से भरा

और मैं भी शामिल हो जाती

फिर बेझिझक अपने हाथ फैलाती

इस विश्वास के साथ के रखेगा वो

मेरे हाथ पर  भी कुछ ऐसा

जैसा मुझको चाहिए बिल्कुल उस जैसा

नहीं सोचा कभी कि कहाँ से आता है

और इतनी खुशी बिना कुछ लिए क्यूँ फैलाता है

नहीं सोचा कभी कि ये इतना क्यूँ भाता है

और मुझ जैसे बच्चों से इसका क्या नाता है ?

कोई बोला कि उत्तरी ध्रुव का ये निवासी है

‘रैन्डियर’ वाली गाड़ी इसके पास अच्छी खासी है

पर मैंने इसे साइकिल पर, टाँगे में , स्कूटर पर

और पैदल भी आते देखा

क्रिसमस के त्योहार पर धूम मचाते देखा

पता नहीं ‘सैन्टा’ को जब भी देखा अपना सा लगा

मजहब, देश , धर्म से परे बस एक सपना सा लगा

जब बड़ी हुई समझ आई तो मैंने ये सोचा

काश कई ‘सैन्टा’ होते सिर्फ एक न होता

कि ‘सैन्टा’ जैसे प्राणी  सौ हजार होते

जो है दिल में आशाएँ खुशियां बोते

बस तब से ही जुट गई ‘सैन्टा’ को ढूँढने में

हर चेहरे, हर व्यक्तित्व , हर अभिप्राय को बूझने में

अब छोटे बच्चों का जब देखती हूँ  ‘सैन्टा’ से लगाव

दुआएँ देती हूँ कि मिलें उन्हे जीवन में कई ‘सैन्टा’ लाजवाब

दुआएँ देती हूँ कि मिलें उन्हे जीवन में कई ‘सैन्टा’ लाजवाब !

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