तुम संग होली !
नहीं पता तुम कौन हो पर कोई तो हो
इन रंगों के साथ आती जाती याद एक सोई तो हो
कभी भोर के गगन में सलेटी नारंगी पीले रंगों
को आपस में उलझते देख के
याद आ जाते हो तुम
कभी काली कॉफी के कप में से
सुबह सवेरे मुंह चिढ़ाते हो तुम
हरी बेलों से हरे हरे लिपट जाते हो
मेरे मन मंदिर में
कभी पीली सुनहरी धूप से फैल जाते हो मेरे घर सुंदर में
भूरी सूखी पत्तियों से तुम्हारे ख्याल दूर तक उड़ जाते हैं
इच्छाओं कि अँधियों में कुछ युद्ध छिड़ से जाते हैं
चटख नारंगी सूरज बन कर
तुम मुझको मजबूर करते हो
लाल बादलों में भर कर मुझे मुझ से ही दूर करते हो
बैंगनी सी शामों में तुम पेड़ों से यूं टपकते हो
कि जैसे बूंद बूंद ख्वाहिश कोई हर पल पलक झपकती हो
गाढ़े नीले आसमान में सफेद चाँदनी के सपनों से
अकेले रोज मिलते हो तुम मुझे हर रात बड़े अपनों से
मैं रोज ही रंगों की होकर तुम संग होली मनाती हूँ
तुम हो कर भी नहीं होते हो , मैं चुप रह कर भी गुनगुनाती हूँ !