तुम चलो हमपे
रास्ते बुलाते हैं, पसरे जाते हैं, इतराते हैं
रास्ते बुलाते हैं, हर ओर बिछे जाते हैं
कहते हैं कि हम हैं हीं कि तुम चलो हमपे
हर दिशा में मंजिलों से मिलों हमपे
तुम्हारे चलने से ही हमारी हस्ती है
हर एक मोड पर पुकारती कोई बस्ती है
ले चलेंगे तुम्हें झोपड़ी कि ढिबरी कि तरफ
कुऐं पर टिकी हुई पानी से भरी गगरी की तरफ
कभी शहरों की घनी भीड़ से भी मिलवाएंगे
कभी सुनसान अकेली झील भी दिखलाएंगे
पहाड़ों की ऊँचाइयाँ भी तुम हमीं से नापोगे
बर्फीली वादियों में सुनहरी आग तापोगे
चलते चलते हम पर कभी थक भी जाओगे
रुक कर किनारे से बर्फ का गोला खाओगे
हम रास्ते सिमटते नहीं जित देखो तित फैले हैं
कहीं गर्व से चौड़े सीने से कहीं दुखदायी पथरीले हैं
रास्ते भटकने का भी अक्सर यहाँ दस्तूर है
भटकते तो तुम सब हो इनमे हमारा का क्या कसूर है?
हम से प्यार करों लोगों हम कहीं तो लेके जाते हैं
ठहरे से तो दिखते हैं हम पर मंजिल तक पहुंचाते हैं।