पत्तियों का नाच

एक पेड़ पे हजारों पत्ती

कितना चमकती, कितना थिरकतीं

सूरज की किरणों की , छलनी सी बनकर

पेड़ों के दिल सी धक धक धड़कती

 

छोटी भी , लंबी भी, पतली भी , मोटी भी

रूई सी कोमल भी, काँटों सी चुभती भी

पेड़ों पर कपड़ों सी , फहर फहर, लहर लहर

पत्तियां उड़ जातीं नगर नगर शहर शहर

 

बड़ी बड़ी बन जाती, बारिश में छाता भी

सूर्य के प्रकाश को सोक लेना भाता भी

हरी हरी चमकती हैं , खा के ये किरणों को

आक्सिजन देती हैं मुझ जैसे कितनों को

 

पान की  हम खाते हैं, नीम की भी कड़वी सी

पत्ते के दोनों में चाट खट्टी मीठी सी

झाड के उग के मुझको ये इतना सिखाती हैं

जीवन निरंतर है पाठ ये पढ़ाती हैं ।  

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