जड़ों की जकड़

ऊंचा लंबा बड़ा सा पेड़

कैसा ये इतराता है

जड़ों से जकड़ के धरती को

मन ही मन मुस्काता है

 

ये जड़ें कहाँ  को जाती हैं?

कितनी गहरी इनकी चाल

धीरे धीरे घुसती हैं मिट्टी में

ये करें कमाल

 

छोटे छोटे रोड़ों को

अलग राह से करतीं हैं

उलझ बड़ी चट्टानों से

अपना पेट ये भरती हैं

 

खोद खोद के मिट्टी को

नीचे बहुत ये जाती हैं

तभी  तो अपने पेड़ दोस्त का

खाना जुटा ये पाती हैं

 

कभी पेड़ कभी पानी में

अपना जाल फैलाती हैं

ऊपर नीचे उलटी सीधी

जड़ें ये बढ़ती जाती हैं ।

 

बांध के रखती हैं मिट्टी को

बुन  कर अपना जटिल जाल

गहराई तक करतीं हैं

ये अपना सब काम कमाल

 

गाजर , मूली चबा के मैं

रोज सवेरे खाता हूँ

जड़ों को अपने दांतों से

मैं पीस पीस आजमाता हूँ!

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