सुनो दीपक।
सुनो दीपक क्या तुम केवल हँसे ही हो, या रोये भी हो कभी?
इस जीवन की भूल भुलैया में क्या तुम खोये भी हो कभी?
क्या तुम कभी जले हो फुलझड़ी के साथ?
क्या कभी लड़े हो पटाखे की लड़ी के साथ?
क्या कभी अँधेरे के संग नाचे हो?
हवाओं से कभी दिल की बात बांचे हो ?
गेंदा के फूलों में क्या कभी खुद को ढूँढा है?
अपने तले के अँधेरे से क्या मन तुम्हारा टूटा है ?
देर रात ड्योढ़ी पर क्या अकेले भी हुए हो कभी?
अपने ही काले धुंएं से क्या मैले भी हुए हो कभी?
मंदिर में भगवान् से क्या तुमने भी कभी कुछ माँगा है?
गंगा में बहते हुए क्या कोई विशेष भाव जागा है ?
क्या चाँद से तुमने भी कभी बातें करीं हैं रात भर ?
क्या फुस्स हुए पटाखे से बैठे हो कभी तुम हार कर ?
क्या तुम्हे मेरी नानी का वो छोटा सा आला याद है ?
हर सांझ टिमटिमाता दीपक उम्मीद वाला याद है ?
माटी के तुम , माटी के हम , माटी में मिल जाना हमें
तो इस दिवाली चलो फिर से एक हमारी महफ़िल जमे।
सुनो दीपक क्या तुम केवल हँसे ही हो, या रोये भी हो कभी?
इस जीवन की भूल भुलैया में क्या तुम खोये भी हो कभी?