चाँद लिए बैठी हूँ

चाँद लिए बैठी हूँ

चाँद लिए बैठी हूँ आज मैं हथेली में

कितनी उलझी सी हूँ एक पहेली में

क्यूँ आ गया है ये ऐसे मेरे आँगन?

क्या पाएगा ये मुझ जैसी अकेली में ?

इसे उछालूँ मैं, या छुपा लूँ इसको?

या अपने हार का मोती बना लूँ इसको?

या कि दीवार पर सजा लूँ इसको?

या कि रख लूँ इसे गमलों की कतारों में?

या सजा लूँ इसे साड़ी के किनारों में?

आगन के नीम पर ही चलो टांग देती हूँ

आज मैं इससे एक चीज मांग लेती हूँ

क्या रहेगा साथ मेरे सपनों की हवेली में?

छाँद लिए बैठी हूँ आज मैं हथेली में।

   

चाँद आप आए हैं 

चाँद  आप आए हैं

क्या साथ अपने लाए हैं?

थोड़ी सी चाँदनी

हल्की सी रोशनी

जग मग रातें

प्यार भरी बातें

चमके हैं चमचम

चलते हैं थम थम

थोड़े से पिघले फिर

थोड़े से मचले

चम चम चम  चम  चम  

नदियों में छन छन

प्यारी सी बातें

लंबी सी रातें

हँसतें हैं छुप छुप

ताकते हैं टुक टुक

मन के हैं सच्चे

पर दाल दाल कच्चे

मेरे हैं हरदम

क्यूँ मिलते कम कम?

आप क्यूँ हर पल मेरे मन में समाए हैं?

चाँद  आप आए है

क्या साथ अपने लाए हैं?

 

मेरे क्या हो?  

चन्दा  बोलो तुम मेरे क्या हो?

क्यूँ मेरे गले पड़ते हो?

कभी तो प्यार करते हो

कभी कितना मुझसे लड़ते हो?

कभी मैं हँसाती हूँ

तो तुम उखड़ उखड़ पड़ते हो

फिर कभी तुम ऐसे ही

खिलखिला क्यूँ पड़ते हो?

क्या अदा है क्या बोलूँ?

हर बात पे बिगड़ते हो

और जब मैं रूठ जाती हूँ

क्यूँ मेरे पैर पड़ते हो?

जब मैं तुम्हें चिढ़ाती हूँ

तुम बार बार चिढ़ते हो

फिर आकर खुद ही रातों में

तुम रोज मुझसे भिड़ते हो

लड़ते हो, बिगड़ते हो, चिढ़ते हो, संभलते हो

मानो या नया मानो तुम

तुम सच में मुझ पे मरते हो !

 

Previous
Previous

एक सूरज , एक धरती

Next
Next

‘इतिहास’ ही हो ना ?