एक सूरज , एक धरती
सूरज को आज धरती कुछ अलग सी लगी
कुछ बदल गया हो वैसी भनक सी लगी
पूछा उसने सुनो धरती क्यों इतना मुसकुराती हो?
क्या कोई बात है जो मुझसे तुम छुपाती हो?
हजारों साल से तुम्हें यूं मुसकुराते ना देखा है
आज की तरह तुम्हें यूं गुनगुनाते ना देखा है
तुम गुमसुम सी , उदास सी ही दिखी हो मुझे
कभी तो भयभीत, तो कभी बदहवास सी दिखी हो मुझे
पर नदियां तुम्हारी आज नाचती सी दिखती हैं
पर्वतों की शृंखलाएँ चम चम चमकती हैं
खेतों की हरयाली और वन जीवन की खुशहाली
धरती तुम्हारी खिलखिलाहट आज कैसी खनकती है
अरे , जानते नहीं सूरज ये तुम्हारी ही देन है
तुम्हें तो पता है मुझे तुमसे कितना प्रेम है
तुम हो तो मैं हूँ , तुम नहीं तो मैं भी नहीं
तुमसे ही मेरा और मानव का सुख चैन है
किरणों संग तुम्हारी मैं अपनी सांस लेती हूँ
सुबह, दोपहर और संध्या तुम्हारी आंच लेती हूँ
पर रात का प्रकाश मेरी छाती को भेद होता है
इन तेल, कोयले की खानों से मुझमें छेद होता है
मेरी व्यथा को शायद ये आदमी अब समझ गया
तुम्हारी ऊर्जा की शक्ती से ही बहुत कुछ सुलझ गया
अब एक सूरज, एक विश्व , एक ग्रिड की बात है
तुम चाहो, या कि ना चाहो, अब दिन ही दिन है ना रात है
तुम भी वही, मैं भी वही, मैं घूमती हूँ तुम रुके
जो मैं चली तो ना रुकी, जो तुम जले तो ना बुझे
क्यूँ व्यर्थ हो तुम्हारा श्रम हर किरण को समेट लें
चलो मैं और तुम मिल के सूरज मानव की ये भेंट लें
मैं भी खुश, तुम भी खुश और मानवता का भी भला ही है
ये उद्यम चक्र , ये जीवन चक्र, अनंत से चला ही है ।