क्या मैं भी दुर्गा ?

तो माँ क्या हूँ मैं भी दुर्गा

मैं भी क्या हूँ स्वप्न सतरंगा ?

क्या  मैं भी हूँ तुम सी ’दशभुजा’?

जो मारूँ राक्षस ‘संभा’ सा?

या हूँ मैं ‘महिषासुरमर्दिनी’ ?

दे दूँ असुरों को एक पटखनी ?

मैं ‘सिंघवाहिनी’ भी हूँ क्या?

सिंघ पर चढ कर बताऊँ धता

पर मैं कोमल हृदय भी हूँ ना?

‘जगतदात्री’, विश्व सराहना ?

या हूँ मैं ‘काली’ बोलो ना माँ ?

सीता का प्रेम, चंडी की गर्जना ?

‘मुक्तकेशी’ बन  कर देखो मैं

भय को मार के दूर फेकू मैं

पालनहारी हूँ मैं क्या ‘तारा’ सी?

पत्नी ब्रहस्पति और बाली राजा की?

‘छिन्नमस्तक’ भी क्या हो सकती हूँ ?

मैं शक्ति हूँ, मैं भक्ति हूँ ?

‘जगदगौरी’ तो हूँ ही मैं माँ क्या ?

लक्ष्मी , सरस्वती और उमा क्या?

‘प्रत्ययांगिरा’ लाल वस्त्रों में

क्या बलि और दान का बीजांकर भी मैं?

‘अन्नपूर्णा’ मैं होना चाहूँ

अन्न दात्री  लाभाकर भी मैं ?

माँ गणेश की कहला कर मैं

‘गणेशजननी’ भी रहूँगी क्या मैं ?

‘कृषणकोरा’ बन कर के  

कृष्ण को जीवन दे दूँगी ना  मैं ?

बोलो दुर्गा, बोलो माता

मैं हूँ क्या नारी, या हूँ शक्ति ?

सचेतन हूँ मैं, या हूँ सनातन

धर्म हूँ मैं या केवल अभिव्यक्ति?

सुनो बालिका धीरज धर कर

तुम दुर्गा हो, तुम ही कृष्णा

तुम ही शिव हो, तुम ही शक्ति

तुम ही श्रद्धा, तुम ही उपासना

सब कुछ तुम हो और कुछ भी नहीं हो

एक बूंद भी तुम हो, सागर भी तुम

स्वयं के भीतर ढूंढो दुर्गा को  

वहीं सचेतन, वहीं सनातन

स्वयं के भीतर ढूंढो दुर्गा को  

वहीं सचेतन, वहीं सनातन

तो माँ क्या हूँ मैं भी दुर्गा

मैं भी क्या स्वप्न सतरंगा ?

Previous
Previous

मुझे मिलना था

Next
Next

साँसे